दुनिया ऐसी हुआ करती थी/नीलोत्पल मृणाल -हिन्दी काव्य कोश


 

दुनिया ऐसी हुआ करती थी

थोड़ा सा नदी का पानी, मुट्ठी भर रेत रखलो,
धान-गेहूँ-सरसों वाले, हरे-हरे खेत रखलो|
रखलो एक बैल भईया, हल से बाँध के,
दुअरे पर गाय खड़ी हो, चारा खाए सान के|
पूछेगा जो कोई तो उसको बतायेंगे
आने वाली पीढ़ियों को चल के दिखायेंगे,
कि दुनिया ऐसी हुआ करती थी|

स्कूल के पीछे वाला अमरुद का पेड़ रखलो,
पोखर के पीढ़ खड़ा वो खट्टे-मीठे बेर रखलो|
एक-दो बगिया रखलो, बगिया में फूल रे,
तितली और भौंरे जहाँ खेलें मिलजुल रे|
पूछेगा जो कोई तो उसको बतायेंगे,
आने वाली पीढ़ियों को चल के दिखायेंगे,
कि दुनिया ऐसी हुआ करती थी|

माटी का चूल्हा रखलो, फूस की चुहानी रे,
मिट्टी के एक घड़े में ठंडा-ठंडा पानी रे|
बैठ के जमीन जहाँ हो खाने की छूट रे,
तावे से रोटी लेते गरम-गरम लूट रे|
दादी-नानी के खिस्से, बाबा की डांट रखना,
आंगन में लगने वाली बुढ़िया की खाट रखना|
सोफे तुम लाख लगा लो, बाबा की चौकी रखना,
उसपर एक पतला बिछौना, लोटा और पानी रखना|
रखना वही एक लालटेन, लालटेन में तेल रे,
रात करे जहाँ चाँदनी रौशनी से खेल रे|
पूछेगा जो कोई तो उसको बतायेंगे,
आने वाली पीढ़ियों को चल के दिखायेंगे,
कि दुनिया ऐसी हुआ करती थी|

गाँव में एक मेला रखना, सर्कस और खेला रखना,
चाट और पकौड़ी वाले एक-दो ठेला रखना|
याद रखना झालमुड़ी का मर्चा तूफानी रे,
गुपचुप में पीने वाला इमली का पानी रे|
होली के रंग बचा लो, दिवाली के दीप रे,
भोर की अजानें रखना, छठ वाले गीत रे|
भूल नहीं जाना अपने लोक-व्यवहार रे,
पुरखों से मिले हुए सब तीज-त्यौहार रे|
पूछेगा जो कोई तो उसको बतायेंगे,
आने वाली पीढ़ियों को चल के दिखायेंगे,
कि दुनिया ऐसी हुआ करती थी|