एक नाटक और भी है

प्रेक्षागृह में बैठे कुछ दर्शक 

इंतज़ार कर रहे हैं 

कि, कब नाटककार 

उठाएगा नाटक पर से पर्दा

और खाली पड़ी कुर्सियाँ

एक-एक कर भरने लगेंगी

उस नाटक के लिए

जो अभी खेला जानें वाला है

पर, एक नाटक और भी है 

जो खेला जा रहा है अनवरत्

बाईस बाई बीस के बने मंच पर नहीं

बल्कि, अखिल विश्व के उस मंच पर

जिस मंच की परिधि असीमित है

यहाँ केवल पुरूरवा और उर्वशी का संवाद नहीं चलता

यहाँ हमारे-तुम्हारे जीवन की

मौलिकता से जुड़े संवाद भी होते हैं

दर्शक का स्थान उस नाटक से भिन्न होता है

उस नाटक में दर्शक नीचे के स्थान पर बैठता है

और,इस नाटक में दर्शक का स्थान सबसे ऊँचा होता है

जो शान्त हो पूरी नाटक देखता है

और नाटक के पटाक्षेप होने पर

आंगिक,वाचिक,आर्हय और सात्विक 

अभिनय कला-कौशल के आधार पर 

उत्कृष्ट नाटक और सर्वश्रेष्ठ रंगकर्मी को

मंच से पुरस्कृत भी करता है

और खराब खेल दिखाए जाने पर 

समय का दुरुपयोग मान दंड भी देता है ।