मौन हूँ अनभिज्ञ नहीं~इमरान सम्भलशाही


तीव्र प्रहारों से हरित पेड़ों की पीर
सर्पदंश भय से कांपते नीड़
भट्ठियों में दहकते प्यासे नीर
तपती धूप में ढलकती बूंदें
दरकती अवश्य है! कहीं ना कहीं 
सभी का उवाच! मौन हूं अनभिज्ञ नहीं!

रात्रि पहर में हूंकती रोटियां
पराधीन, विवश, कांपती अंगड़ाइयां
भूख से कुलबुलाती निर्धन चमड़ियां
टूटे कोमल मन, प्रस्तर युक्त नगर
देखकर भी! संसद को बिल्कुल चिंता नहीं!
सभी का उवाच! मौन .......................

वृद्ध जनक के झुर्रीदार मुखड़े
मरियल हड्डियों में अश्रुपूरित दुखड़े
मां की दुखती आंखे, फटे हुए कपड़े
संतानों के चिंघाड़ से भयभीत मचान
श्राप अवश्य देंगे, अगर कष्ट नहीं हटी
सभी का उवाच! मौन.....................

न्यायी के जोड़- तोड़ से दुखी न्यायालय 
भरभराती नींव व चूती हुई आलय
मूर्ति भंजको, लुटेरों से घिरा देवालाय
सड़क से संसद तक रेंगता शोषित वर्ग
प्रश्न अवश्य करेंगे, अगर रहे यहीं!
सभी का उवाच! मौन..................

इमरान सम्भलशाही
जौनपुर, उत्तर प्रदेश