श्रम साधक को विश्राम नही~अभिषेक श्रीवास्तव कुन्दन


चल पड़ती नदियों की धारा 
हो आतुर जलनिधि में मिलने 
उगता सूरज देख भोर में 
खिल जाते पंकज नित जल में 
मंद मंद गतिशील पवन है 
भौरों को आराम नही है 
श्रम साधक को विश्राम नही है 

खेतो में हल पैने करके 
चले अन्नदाता निज धुन में 
फटे वस्त्र है तन पे इनके 
फिर भी हर्षित अंतर्मन में 
खेतो में हरियाली छायी 
परिश्रम का परिणाम यही है 
श्रम साधक को विश्राम नही है 

छैनी और हथौड़ी लेकर 
मूर्तिकार मूरत को गढ़ता 
निज जीवन के जटिल समय में 
पाहन में प्राणों को भरता 
पूजी जाती ऐसी मूरत 
जीवन का मुस्कान यही है 
श्रम साधक को विश्राम नही है 

अभिषेक श्रीवास्तव ' कुन्दन ' 
भिनगा -श्रावस्ती , उत्तर प्रदेश