बंदी जीवन भी क्या जीवन ~ डॉ अखण्ड प्रकाश


पग पग पर प्रवत्ति का पहरा,स्वांस स्वांस प्रतिबन्धित चिन्तन।(१)
भावों  पर  सारंग  सधा  तो , बंदी जीवन भी क्या जीवन।।‌(२)
 पद्य कार पावनी पखेरू,प्रत्यंचा पर चढ़े तीर से।
गमन हेतु आतुर रहते हैं,पवन पुत्र लक्ष्मण वीर से।।(३)
 ना मानें अवरोध मार्ग के,बांध सके ना कोई सिहरन।
भावों  पर  सारंग  सधा  तो , बंदी जीवन भी क्या जीवन।(४)

कविता तो उन्मुक्त नदीसी,शिखरों से भूतल पर आती।
बूंद वाष्प बन ऊपर जाएं,या धारा बन भू सरसाती। (५)
अनासक्त अनुरक्त हृदय सा,कर्म अकर्म भाव का चिंतन।
भावों पर सारंग सधा तो , बंदी जीवन भी क्या जीवन।।(६)
जीवन तो गति का ध्योतक है,किन्तु कहीं बाधा आ जाती।
ठिठकन आ जाती है स्वासों में,विविध रूप शंका दर्शाती।।(७)
वीरोचित भावो की डर से,तत्क्षण ही हो जाती अनबन।
भावों पर सारंग सधा तो , बंदी जीवन भी क्या जीवन।।(८)
पहरे प्रतिपल दिखे चिढ़ाते,अन्तर से हूकन उठती है।
करतीं जब चित्कार श्रृंखला,पुनि जीवट पिपास जगती है।।(९)
स्वतंत्रता की तड़प चीख कर, करने लगती ताण्डव नर्तन।
भावों पर सारंग सधा तो ,  बंदी जीवन भी क्या जीवन।।(१०)
                 ~ डॉ अखण्ड प्रकाश
                   कानपुर, यूपी