ऐसा कुछ कर जायें - उमा विश्वकर्मा

उमा विश्वकर्मा , कानपुर
कविता-ऐसा कुछ कर जायें..


 इस दुनिया से जाएं हम तो
ऐसा कुछ कर जायें ।
याद करे दुनिया हमको
आँखे भर-भर आयें।

सच्चाई के पथ पे चलें हम
झूठ को पीछे छोड़े
अच्छाई का हाथ पकड़ कर
सबसे नाता जोड़े
जीवन अपना सरल बना ले
और तरल हो जाये
याद करे दुनिया हमको
आँखे भर-भर आयें।

पर सेवा उपकार करें हम
पर हित ध्येय बना लें
तिमिर घना हो चाहें जितना
आशा ज्योति जला लें
जब भी मन का दीप जलायें
उजियारा भर जाये
याद करे दुनिया हमको
आँखे भर-भर आयें।

मर्यादित हो शब्द हमारे
संस्कारित हो भाषा
नेह की गागर छलकाये हम
दूर हो घोर निराशा
सुख दुख जीवन के दो पहलू
इक आये इक जाए
याद करे दुनिया हमको
आँखे भर-भर आयें।

आने वाले कल के ख़ातिर
काम हमें कुछ करने
रिक्त रहे न कोई कोना
खुशियों से हैं भरने
जीवन के अंतिम श्वांसों तक
हम कर्तव्य निभायें
याद करे दुनिया हमको
आँखे भर-भर आयें।
           उमा विश्वकर्मा , कानपुर