गैर सूरत है मेरी देखने आए कोई।
कौन है किस्सा-ए-गम जिस को सुनाए कोई।
कहती है रो-रो के हर इक पे ये भारत माता,
मुझे कमजोर समझ कर न सताए कोई।
दूध बचपन में सपूतों को पिलाया मैंने,
अब बुढ़ापे में दवा मुझ को पिलाए कोई।
खौफ ऐसा है कि चलने से गिरी जाती हूँ,
दोनों हाथों से मुझे आ के उठाए कोई।
मैंने बिगड़ी हुई तकदीर बनाई सब की,
मेरी बिगड़ी हुई तकदीर बनाए कोई।
मैंने बचपन में बहुत नाज उठाए सब के,
अब बुढ़ापे में मेरा नाज उठाए कोई।
ख्वाबे गफलत में पड़े सोते हैं अहले वतन,
होश मे लाए कोई, इन को जगाए कोई।
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